1. जो गुस्से या उतावलेपन में धर्म, अर्थ और काम का आरंभ नहीं करता है । दूसरों के दोष नहीं देखता है और आनंद न मिलने पर गुस्सा नहीं होता है, उसकी प्रशंसा होती है ।
2. जो आपत्ति पड़ने पर दुखी नहीं होता है बल्कि सावधानी के साथ उद्धोग का सहारा लेता है । और समय पड़ने पर दुःख सहता है , उसके शत्रु हारते ही हैं ।
3. जो शांत हुई दुश्मनी की आग को फिर से नहीं भडकता, गर्व नहीं करता, हीनता नहीं दिखाता । मैं विपत्ति मैं पड़ा हूँ ये सोचकर गलत काम नहीं करता, वह श्रेष्ठ होता है ।
4. जो दान, हवन, देवपूजन, मांगलिक काम, प्रायश्चित, और कई प्रकार के लौकिक आचार को करता है। देवता ऐसे व्यक्ति के अभ्युदय की कामना करते हैं।
5. जो आश्रितों को बांटकर थोडा भोजन करता है। अधिक काम करके थोडा सोता है और मांगने पर जो मित्र नहीं है उसे भी धन देता है, उसे सरे अनर्थ दूर से ही छोड़ देते हैं।
6. जो खुद ही अधिक लज्जाशील है, वह सब लोगों मैं श्रेष्ठ समझा जाता है। वह अपने तेज, शुद्ध ह्रदय और एकाग्रता से युक्त होने के कारण सूर्य के समान शोभा पता है।
7. जो निरर्थक विश्वास, पापियों से मेल, पाखंड, चुगलखोरी, चोरी और मदिरापान नहीं करता है ऐसा व्यक्ति हमेशा सुखी रहता है।
8. असावधान, नशे में मतवाले, पागल, क्रोधी, जल्दबाज, लोभी और भयभीत लोगों पर विद्वान पुरुषों को आसक्ति नहीं बढ़ानी चाहिए।
2. जो आपत्ति पड़ने पर दुखी नहीं होता है बल्कि सावधानी के साथ उद्धोग का सहारा लेता है । और समय पड़ने पर दुःख सहता है , उसके शत्रु हारते ही हैं ।
3. जो शांत हुई दुश्मनी की आग को फिर से नहीं भडकता, गर्व नहीं करता, हीनता नहीं दिखाता । मैं विपत्ति मैं पड़ा हूँ ये सोचकर गलत काम नहीं करता, वह श्रेष्ठ होता है ।
4. जो दान, हवन, देवपूजन, मांगलिक काम, प्रायश्चित, और कई प्रकार के लौकिक आचार को करता है। देवता ऐसे व्यक्ति के अभ्युदय की कामना करते हैं।
5. जो आश्रितों को बांटकर थोडा भोजन करता है। अधिक काम करके थोडा सोता है और मांगने पर जो मित्र नहीं है उसे भी धन देता है, उसे सरे अनर्थ दूर से ही छोड़ देते हैं।
6. जो खुद ही अधिक लज्जाशील है, वह सब लोगों मैं श्रेष्ठ समझा जाता है। वह अपने तेज, शुद्ध ह्रदय और एकाग्रता से युक्त होने के कारण सूर्य के समान शोभा पता है।
7. जो निरर्थक विश्वास, पापियों से मेल, पाखंड, चुगलखोरी, चोरी और मदिरापान नहीं करता है ऐसा व्यक्ति हमेशा सुखी रहता है।
8. असावधान, नशे में मतवाले, पागल, क्रोधी, जल्दबाज, लोभी और भयभीत लोगों पर विद्वान पुरुषों को आसक्ति नहीं बढ़ानी चाहिए।
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